Gulzar Poetry in hindi
नींद क्या है एक सुकूनइश्क क्या एक बेचैनी
ना नींद रहे ना इश्क
वो होती है तन्हाई
~ सुनील पंवार
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
गुलज़ार
फिर वहीं लौट के जाना होगा,
यार ने कैसी रिहाई दी है!
- गुलज़ार
Gulzar poetry Instagram
वह मेरे साथ ही था दूर तक
मगर इक दिन
जो मुड़ के देखा तो
वह दोस्त मेरे साथ न था..
फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।
~ गुलज़ार
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
~ गुलज़ार
जब सरकार ग़लत हो तो आपका सही होना ख़तरनाक हो सकता है।
- वॉल्टेयर
Gulzar poetry on love
हम शायर लोग है हमसे दोस्ती थोड़ा कम रखो जनाब,
हमारे जनाजे अक़्सर जवानी में ही उठते है..!!❤️
ना जाने कितने सवालों की
आबरू रखती है खामोशी....
हजार जवाबों से अच्छी लगती है., खामोशी।।
तुम ही जरूरी हो,
अगर तुम समझो तो....
ढूंढोगे मुझे हर किसी में ...
वो मंज़र भी आयेगा ..
याद जब भी आयेंगे हम ..
आंखों में समंदर भी आएगा !!!
Gulzar sad poetry
ना चाहतों का ना ही ये दौलतों का रिश्ता
ये तेरा मेरा तो बस रूह का रिश्ता ... ..
सच कहा था किसी ने इश्क बर्बाद कर देता है
पर यह कोई नहीं बताता इस बर्बादी में जीने का मजा अलग है
तेरी रूह में सन्नाटा है और मेरी आवाज़ में चुप्पी।
तू अपने अंदाज़ में चुप, मैं अपने अंदाज़ में चुप।।
कुछ लोग तो ख़िलाफ़ हों हासिद कोई तो हो
क्या लुत्फ़ सीधी सादी मोहब्बत में आएगा
फ़ाज़िल जाफ़री
जब कहते हैं हम करते हो क्यूं वादा-ख़िलाफ़ी
फ़रमाते हैं हंस कर ये नई बात नहीं है
- लाला माधव राम जौहर
काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है
~ फ़हमी बदायूनी
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं
दाग़ देहलवी
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.
-बशीर बद्र
गुलजार लव शायरी
ज्ञानी लोग किताबों की पूजा करते है,
जबकि अज्ञानी लोग पत्थरों की पूजा करते है।
-डॉ. भीमराव अंबेडकर
मेंने तुम लोगों को मतदान का अधिकार राजा बनने के लिए दिया था,
तुम्हे किसी का दलाल या चमचा बनने के लिए नही।
-डॉ. भीमराव अंबेडकर
तमाशा देखने कोई रुकता नही अब,
ये तो रोज़ का किस्सा हो चला है यहाँ।
हटा दो शहर के आईनें सारे,
हर शख्श बदसूरत हो चला है यहाँ।
~ सरिता सृजना
फूल खिलते ही तितली भी आई
क्या कोई दोस्ती पुरानी है
नादिर शाहजहाँपुरी
Gulzar love poems
ऐ इश्क़ जहां है यार मेरा
मुझ को भी उसी जगह तू ले चल
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
~ वसीम बरेलवी
तुम अगर भूल भी जाओ
तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है,
मैंने तो मोहब्बत की है..
~ साहिर लुधियानवी
छत नहीं रहती,
दहलीज नहीं रहती,
दीवार-ओ-दर नहीं रहता
घर मे अगर बुजुर्ग ना हो तो घर, घर नहीं रहता।
~ शैलेश लोढ़ा
मुझे तेरे दिल में कुछ यूं उम्रकैद मिले,
थक जाए सारे वकील पर मुझे जमानत ना मिले..
Gulzar ki shayari
क्या करूं नज़दीकियाँ तुमसे इस कदर हैं मेरी..
दिल धडकता है तुम्हारा तो सांसे चलती हैं मेरी..
वो तो तेरी आँखे हसीन थी...
वरना बातो से मुझे कहाँ कोई बहला सकता है. . .
कहाँ नसीब, कहीं चैन से रहना मुझको
मैं एक दरिया हूँ हर हाल में बहना मुझको
—हरिओम
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
- बशीर बद्र
गुलजार शायरी हिंदी में
नज़र झुका के उठाई थी जैसे पहली बार
फिर एक बार तो देखो उसी नज़र से मुझे
- गुलज़ार देहलवी
मिल ही जाएगी कहीं ढूँढने वाले को बहार
हर गुलिस्ताँ में ख़िज़ां हो ये ज़रूरी तो नहीं
साहिर होशियारपुरी
मैं बिना किसी मध्यस्थ के
छिलकों और बीजों के बीच से होते हुए
सीधे अमरूद के धड़कते हुए दिल तक
पहुँचना चाहता हूँ।
◆ केदारनाथ सिंह
कोई घाव हमेशा घाव नहीं रहना चाहता, वह मरहम लगाने वाले की स्मृति में बदल जाना चाहता है।
लवली गोस्वामी 🌻
Heart touching Gulzar poetry
वो हम से ख़फ़ा हैं हम उन से ख़फ़ा हैं
मगर बात करने को जी चाहता है
~ शकील बदायुनी
न मेरा है
न तेरा है
ये हिन्दुस्तान सबका है
नहीं समझी गई ये बात
तो नुकसान सबका है
- उदयप्रताप सिंह
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
ख़ुमार बाराबंकवी
खुलते-खुलते रह गई मेरी ज़ुबाँ
इक तमाशा होते-होते रह गया
- राजेश रेड्डी
अब जातियां कहाँ बचीं?
मैं नहीं मानता जातिवाद!
मैं तो "उनके घर"
खाना भी खाता हूँ
यह जो "उनके घर" शब्द है न!
यही जातिवाद है।
- अशोक कुमार
मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए
~ निदा फ़ाज़ली
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इस का कोई नहीं है हल शायद
~ गुलज़ार
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