ghalib ke sher shayari on love in hindi

ghalib ke sher shayari on love in hindi 






ghalib ke sher shayari on love in hindi

कितने ही धागों में उलझी थी मैं,

तेरे आने से पहले ।

अब तो सिर्फ़ तुम तक ही,

हर डोर दिखाई देती है ।

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लफ़्ज़ों और लाहज़ों का ज़रा लिहाज़ रखना,
कई मसखरों को ख़ुद का मज़ाक देखी है मैंने ।

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जो आदतों से बयां ना हो वो इश्क़ कैसा,
लफ़्ज़ों से तो एहसान भी जताएं जाते हैं ।

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लफ़्ज़ों को पढ़ सिर्फ मैं मायल होती हूँ,
जो मेरी रूह को छू ले उसी की कायल होती हूँ ।

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अब छोड़ भी दो पैरवी ख़ुद के रवैये की,
अहमियत ना अब तुम रखते हो ना तुम्हारा नज़रिया ।

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शक करने की वजह से लोग,
एक दूसरे से अपने मन की बात
शेयर नहीं कर पाते हैं ।

जिसकी वजह सी एक लकीर बन जाती है,
जो उन्हें पहले जैसा प्यार करने से रोकती है ।

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उसने कहा तुम बोलती बहुत हो,
तो मैंने भी मुस्कुरा के कह दिया,

जो तू कर ले वादा,
मेरी ख़ामोशी को पढ़ने का,
खिलौने की तरह,
बे-आवाज़ होने को तैयार हूँ मैं ।

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एक हक़ीक़त ये भी है दोस्तों,

जो मोहब्बत पर खूब लिखते हैं,

वो मोहब्बत करना बहुत पहले छोड़ चुके होते हैं ।

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किसे खोज़ रहे हो तुम इस गुमनाम सी दुनियां में,

हम लफ़्ज़ों में जीने वाले अब ख़ामोशी में रहते हैं ।

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एक सवाल सबसे जवाब देंगे क्या ?

एक रचना/कलाम खूबसूरत कैसे होती है ?

🤷‍♀🤔

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किसी को सवाल किसी को जवाब पसन्द नहीं आता,

किसी किसी को 'अक़िला' का कोलैब पसन्द नहीं आता ।

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वो नए जमाने का लड़का है,

मुझसे इश्क़ बेशक बेहिसाब करता है ।

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तोहफ़ा-ए-इश्क़ में वो गुलाब नहीं,

मुझे अक्सर हिज़ाब दिया करता है ।

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याद आएगी हर रोज मगर तुझे,
आवाज़ ना दूंगी ।

मैं लिखूंगी तेरे लिए ही हर ग़ज़ल,
मगर तेरा नाम ना लुंगी ।

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उम्र बिना रुके सफर कर रही है,

और हम ख्वाहिशें लेकर वही खड़े हैं ।

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मैंने थोड़ी सी रोशनी मांगी थी ज़िंदगी में,

चाहने वाले ने तो आग ही लगा दी ।

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खो गईं हूँ इस भीड़ में,

ख़ुद को भुलाती जाती हूँ ।

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पहले बात बात पर बहस करती थी,

अब तो बस ख़ामोश होते जाती हूँ ।

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ग़र हो गया हो यकीन तो तवज़्ज़ो दे देना,

ये वो एहसासात हैं जो पढ़ने वालों को अपना मालूम होता है ।

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अपने लफ़्ज़ों से हर दिल अज़ीज बन बैठे हैं,

वो एक दोस्त जो उस्ताद रूपी ताबीज़ बन बैठे हैं ।

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समझती हूं ख़ुद को कभी ख़ुद से नाराज़ हो जाती हूँ,

कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी की हर रात बिताती हूँ ।

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अहम के ख़्यालात से बहुत दूर है,

'अक़िला' ख़ुद ही ख़ुद के लिए मशहूर है ।

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बाजारों में मिलती है खुशबू ना जाने कितनी तरह की, 

असली महक के तलबगार गीली मिट्टी की तलब रखते हैं ।

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चप्पल में चुभने लगे हैं सड़क के कंकड़, 

कोई मुझमें पैरों का दर्द सहने की हिम्मत जुटा दे ।

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