galib ki shayari in hindi on life | गालिब की शायरी इन हिंदी ऑन लाइफ
इश्क़ ग़ालिब
उसने कहा तुम बोलती बहुत हो,
तो मैंने भी मुस्कुरा के कह दिया,
जो तू कर ले वादा,
मेरी ख़ामोशी को पढ़ने का,
खिलौने की तरह,
बे-आवाज़ होने को तैयार हूँ मैं ।
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एक हक़ीक़त ये भी है दोस्तों,
जो मोहब्बत पर खूब लिखते हैं,
वो मोहब्बत करना बहुत पहले छोड़ चुके होते हैं ।
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मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल
किसे खोज़ रहे हो तुम इस गुमनाम सी दुनियां में,
हम लफ़्ज़ों में जीने वाले अब ख़ामोशी में रहते हैं ।
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एक सवाल सबसे जवाब देंगे क्या ?
एक रचना/कलाम खूबसूरत कैसे होती है ?🤷♀🤔
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किसी को सवाल किसी को जवाब पसन्द नहीं आता,
किसी किसी को 'अक़िला' का कोलैब पसन्द नहीं आता ।
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मिर्जा गालिब के दोहे
वो नए जमाने का लड़का है,
मुझसे इश्क़ बेशक बेहिसाब करता है ।
तोहफ़ा-ए-इश्क़ में वो गुलाब नहीं,
मुझे अक्सर हिज़ाब दिया करता है ।
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कितने ही धागों में उलझी थी मैं, तेरे आने से पहले ।
अब तो सिर्फ़ तुम तक ही,।हर डोर दिखाई देती है ।
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द फेमस गालिब
याद आएगी हर रोज मगर तुझे, आवाज़ ना दूंगी ।
मैं लिखूंगी तेरे लिए ही हर ग़ज़ल, मगर तेरा नाम ना लुंगी ।
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उम्र बिना रुके सफर कर रही है,
और हम ख्वाहिशें लेकर वही खड़े हैं ।
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन हिंदी २ लाइन्स
मैंने थोड़ी सी रोशनी मांगी थी ज़िंदगी में,
चाहने वाले ने तो आग ही लगा दी ।
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खो गईं हूँ इस भीड़ में, ख़ुद को भुलाती जाती हूँ ।
पहले बात बात पर बहस करती थी,
अब तो बस ख़ामोश होते जाती हूँ ।
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन उर्दू
(लो आज फ़िर किसी ने पूछ ही लिया🤔🤷♀)
Aap khud se likhti ho na
ये वो आह हैं साहब,
जो दिल से निकलकर कोरे कागज पर फैल जाते हैं ।
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कलम खुद से कहाँ चलती हैं जनाब,
ये वो ज़ज्बात हैं मचलकर सँवर जाते हैं ।
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मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी हिंदी में
तारीफ़ के मोहताज़ नहीं होते कुछ सच्चे लोग,
क्योंकि फूलों पर कभी इत्र लगाया नहीं जाता ।
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समझती हूं ख़ुद को कभी ख़ुद से नाराज़ हो जाती हूँ,
कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी की हर रात बिताती हूँ ।
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ग़ालिब की शायरी हिंदी में Love
अहम के ख़्यालात से बहुत दूर है,
'अक़िला' ख़ुद ही ख़ुद के लिए मशहूर है ।
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बाजारों में मिलती है खुशबू ना जाने कितनी तरह की,
असली महक के तलबगार गीली मिट्टी की तलब रखते हैं ।
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मिर्जा गालिब दर्द शायरी इन हिंदी
चप्पल में चुभने लगे हैं सड़क के कंकड़,
कोई मुझमें पैरों का दर्द सहने की हिम्मत जुटा दे ।
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तुम छुपा ना सकोगे मैं तुम्हारी वो राज़ हूँ,
आंखों से कब बयां कर दोगे मैं वो साज हूँ
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इश्क़ जुनून बन जाए और क्या चाहिए,
उसे भी एक दिन मोहब्बत हो जाए और क्या चाहिए ।
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ग़ालिब की शायरी हिंदी में Rekhta
इश्क़ तो तुझसे मुझे आज भी उतना ही है,जितना कल था ।
बस फ़र्क़ ये है, अब तू गलत-लत सा हो गया है मेरी ।
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मोहब्बत में रोतें रोतें जान निकल जाती है,
बस एक जान ही नहीं निकलती ।
इश्क़ में उसे भुला दिया जाता है,
मोहब्बत उसे भूलने ही नहीं देती ।
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