Murshid shayari In Hindi on life
मुर्शीद,
आसमान पे चांद जल रहा होगा
किसी का दिल मचल रहा होगा
उफ्फ ये मेरे पैरो मे चुभन कैसी है
जरूर वो कांटो पर चल रहा है
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मुर्शीद,
वो एक अजनबी है मगर रुह के पास लगता है
मेरी तरह मुझे वो भी उदास लगता हैं
करू तलास तो हो सक वजूद पर उसके
जो आंखे बंद करू तो आए पास लगता हैं
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मुर्शीद,
तुम्हारे बाद बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
तुम्हारे बाद किसी पर ख़फ़ा नहीं हुए हम...
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मुर्शीद,
तेरी आहट से बढ़ जाती हैं धड़कनें मेरे दिल की...
इसे गर इश्क़ न कहें... जो ज़्यादती होगी...!!
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मुर्शीद,
हमने तमाम कोशिश की
उन पर से अपनी नजरे हटाने की
पर वो अपने अदाओं से करते रहे वार
हमे अपने इश्क में गिराने की।
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मुर्शीद,
तुम कोई बात क्यों नही करते
फिर कोई बात हो हो गई क्या...
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मुर्शीद,
दुनिया रही तो प्यार जन्म लेगा फिर कहीं
ये आगरे का ताजमहल आखिरी तो नहीं
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मुर्शीद,
कयामत तक याद करोगी किसी ने दिल लगाया था
एक होने की उम्मीद भी ना थी
फिर भी पागलों की तरह चाहा था।।
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मुर्शीद,
जा आजाद किया मैने तूझे अपनी मोहब्बत की कैद से
जो तुझे मुझसे ज्यादा चाहे उसकी हो जाना।।
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मुर्शीद,
चाहिए नही हमे वो जो हर किसी का हो
बस इतना ही हो जो हो हक हमारा ही हो...
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मुर्शीद,
शायरी में सिमटते कहाँ है दिल के दर्द दोस्तों,,,,
बहला रही हूँ खुद को जरा कागजों के साथ,,,
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मुर्शीद,
सर झुका कर काबुल कर ली हर सजा
बस कसूर इतना सा था की बेकसूर थे हम।।
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मुर्शीद,
""फिकर कर दिखा मत, कदर कर जता मत,,, और ....
आप चाहते हैं ना दोस्ती बनी रहे, तो मोहब्ब्त कर बता मत...."""
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ए खुदा तू जब मेरी किस्मत लिख रहा था
तुम्हारा भी दिल टूटा हुआ था क्या
लिखने से पहले थोड़ा तो रहम करता
जिंदगी में बस दर्द ही दर्द लिखा है।।
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मुर्शीद,
कुछ छोड़ गए और कुछ को छोड़ दिया ,
अब हम अकेले सुकून से रहते हैं ।।
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मुर्शीद,
किसको इतनी आसानी से मिल गए तुम,
कौन था वो जिसने ये हाल किया तुम्हारा...
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मुर्शीद,
काश तुझे मेरी जरूरत हो मेरी तरह,
और तू अल्फ़ाज़ो में लिखे मुझे मेरी तरह.....
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मुर्शीद,
Na chahte huye bhi ye Ishq deewana bana deta hai
Khuda dil to deta hai lekin,
Dhadkan kisi aur ko bana deta hai.
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मुर्शीद,
जिस चांद को कभी जी भर के देख ना पाए
आज वो चांद भी मेरा है !
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मुर्शीद,
वक़्त-ए-इफ्तार जो होंठों से लगे...
ऐसे पानी से भी अजीज हो तुम!!
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मुर्शीद,
गज़ब का जलवा है सर उठा के देख ज़रा....
भीड़ जो लगी है सरे बाज़ार.....
सब तेरी जुल्फों से घायल नज़र आते हैं हमें...!!
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मुर्शीद,
इश्क़ तो फर्ज था कहीं न कहीं होना था
हो गया उससे मगर जिससे नहीं होना था...
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मुर्शीद,
तेरी मोहब्बत का हर रंग मेरी रूह में उतर गया
तुझे सोचना तुझे चाहना मेरी आदतों में बदल गया...
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मुर्शीद,
एक बार किसी को जुबान दिया
तो हम किसी कीमत पर पिछे नही हटते
ये मोहब्बत बदलने की आदत आपकी है हमारी नही है।।
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मुर्शीद,
इजहार-ए-इश्क़ की खातिर कई अल्फ़ाज़ सोचे थे
ख़ुद ही को भूल गए हम जब वो सामने बैठे थे...
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मुर्शीद,
घुटन सी होने लगी है मुझको मेरे मुस्कराने से
क्या शिकायत अब करूगा मैं जमाने से।
लोग क्या अंदाजा लंगाएँगे मेरे जख्म का
लोग जख्म कुरेद देते है अब तो जख्म दिखाने से....!!
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मुर्शीद,
जिंदगी की भीड़ में हम अकेले रहे गए
साथ तूने भी छोड़ दिया इस दुनियां की भिड़ में
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