shayari by bashir badrk

shayari by bashir badr

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पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह 
बच्चों में कोई बात हमारी न आएगी 
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तुम्हारी चाल की आहिस्तगी के लहजे में 
सुख़न से दिल को मसलने का काम लेना है 

नहीं मैं 'मीर' के दर पर कभी नहीं जाता 
मुझे ख़ुदा से ग़ज़ल का कलाम लेना है
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बशीर बद्र के शेर

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे 
ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे

मेरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा 
तेरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
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shayari by bashir badrk

shayari by bashir badr

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है 
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे
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मशहूर शायरों के शेर

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है 
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है 

मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ 
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है 
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ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे 
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में 
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जाने माने शायरों की शायरी

shayari by bashir badr

वो अब वहाँ है जहाँ रास्ते नहीं जाते 
मैं जिस के साथ यहाँ पिछले साल आया था 
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सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर 
कहानियों के पुर-असरार लब तुम्हारी तरह 
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पुराने शायरों की शायरी

दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है 
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते 
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सुना के कोई कहानी हमें सुलाती थी 
दुआओं जैसी बड़े पान-दान की ख़ुशबू
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फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है 
इस में तिरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है 
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बशीर बद्र की दर्द भरी शायरी

shayari by bashir badr

कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें 
शायद मेरे दिल की धड़कन चुनी है इन दीवारों में 
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जिस को देखो मिरे माथे की तरफ़ देखता है 
दर्द होता है कहाँ और कहाँ रौशन है
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बशीर बद्र के लल्लनटॉप शायरी

यूँ तरस खा के न पूछो अहवाल 
तीर सीने पे लगा हो जैसे
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ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए 
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है 
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मेरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है 
तमाम मुल्क में वो सब से ख़ूबसूरत है
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Bashir Badr Love Shayari

shayari by bashir badr

मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ 
वो जो एक रात को आसमाँ का निज़ाम दे मिरे हाथ में 
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उनके अशआर महज़ एक वारदात नहीं बल्कि एक कहानी बयान करते हैं जिन पर अफ़सानों की बारीक नक़ाब पड़ी होती है
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डॉ बशीर बद्र की गजलें

ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत 
घर से निकलो तो ये दुनिया ख़ूबसूरत है बहुत

धूप की चादर मेरे सूरज से कहना भेज दे 
ग़ुर्बतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत है बहुत
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बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं 
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
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