shayari by mirza ghalib | मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

shayari by mirza ghalib | मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

shayari by mirza ghalib | मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

इश्क_ऐ_ख़ुदा_ग़र नहीं हुआ तो रूह बहुत पछताएगी

मिट्टी की चाहत मिट्टी को मिट्टी में लेकर जाएगी।।


मोहब्बत किससे और कब हो जाये अदांजा नहीं होता,

 ये वो घर है जिसका दरवाजा नहीं होता💞 😉 😊


ज़हर है तो कहीं दवा है ईश्क़

जीना मुश्किल है ये क्या बला है ईश्क़ ?


जीतने के बाद हमें अपनी मात भी देखनी थी,
रौशन सवेरे के बाद काली रात भी देखनी थी !

हम तो बस उसे देखते रहे और जीते रहें,
ये तो सोचा ही नहीं ईश्क़ में जात भी देखनी थी !


मेरा मयार मुस्तकबिल की मात देखता है,
कोई बाबा ऐसा बताओ जो हाथ देखता है !

आशिक़ महबूब को देखकर पागल हो जाते हैं,
एक जमाना है ईश्क़ में भी जात देखता है !


कुछ अधूरी सी है हम दोनों की ज़िन्दगी,

तुम्हें मोहब्बत की तलाश है मुझे तुम्हारी..!!


टूटे रिश्ते को जोड़ देना चाहिए,
गुरुर अना का तोड़ देना चाहिए !

वालिद के दस्तार पे आए ग़र धब्बा,
तो गहरा ईश्क़ भी छोड़ देना चाहिए !


❝  खुश रहना तो हमने भी सीख लिया था उनके बगैर,

मुद्द्त बाद उन्होंने हाल पूछ के फिर बेहाल कर दिया..! ❞


चाहने वालों के दिल में हूँ दुश्मनों के दिमाग में,

मुझे घायल करने में तुम्हें कई साल लगेंगे।


हर रास्ता एक सफर चाहता है

हर मुसाफिर एक हमसफ़र चाहता है

जैसे चाहती है चांदनी चाँद को

कोई है जो आपको इस कदर चाहता है


shayari by mirza galib

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।

Dard Jab Dil Me Ho To Dawa Kijiye,
Dil Hi Jab Dard Ho To Kya Kijiye?

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।

Rahi N Takat-E-Guftaar Aur Agar Ho Bhi,
To Kis Ummid Pe Kahiye Ke Aarzoo Kya Hai..

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।

Nazar Lage N Kahi Usake Dast-O-Baju Ko,
Ye Log Kyun Mere Zakhme Jigar Dekhate Hai..

ग़ालिब दर्द भरी शायरी इन उर्दू हिंदी

shayari by mirza galib

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।

Ishq Ne Galib Nikamma Kar Diya,
Warna Ham Bhi Aadami The Kaam Ke..

वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख।
नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।।

Vaiz teri Duwaon Me Asar Ho To Masjid Ko Hilake Dekh,
Nahi To Do Ghut Pee Aur Masjid Hilata Dekh..

हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।

Hatho Ki Lakiron Pe Mat Ja E “Galib”,
Nasib Unake Bhi Hote Hai, Jinake Hath Nahi Hote.

मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन हिंदी २ लाइन्स

shayari by mirza galib

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।

Un Ke Dekhe Se Jo Aa Jati Hai Munh Pe Raunak,
Wo Samjhate Hai Ki Bimaar Ka Hal Achchha Hain..

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक.

Aashiqui Sabra Talab Aur Tamanna Betaab, Dil Ka Kya Rang Karu Khoon-Ae-Zigar Hone Tak. – Mirza Ghalib

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ 
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।

Jab laga tha teer tab itna dard naa hua ghalib,
Zakhm ka ehsaas tab hua
Jab kamaan dekhi apno ke hath me.

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते.

Kitna Khauf Hota Hai Shaam Ke Andhero Me, Puch Un Parindo Se Jinake Ghar Nahi Hote. – Mirza Ghalib

द फेमस गालिब

shayari by mirza galib

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’।
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।

Ishq Par Jor Nahi Hain Ye Aatish “Galib”,
Ki Lagaaye Naa Lage Bujhaye Na Bujhe..

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।

N Tha Kuchh To Khuda Tha, Kuchh N Hota To Khuda Hota,
Duboya Mujh Ko Hone Ne N Hota Main To Kya Hota..

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।

Kaba Kis Muh Se Jaoge “Galib”,
Sharm Tum Ko Magar Nahi Aati..

ग़ालिब प्रेम शायरीमिर्जा गालिब के दोहे

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब,
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था.

Ek Ek Katre Ka Mujhe Dena Pada Hisaab, Khoon-Ae-Zigar Vadiat-Ae Mijgaan -Ae-Yaar Tha. – Mirza Ghalib 

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.

Rago Me Daudte Firne Ke Ham Nahi Kiel, Jab Aankh Hi Se Na Tapka To Fir Lahu Kya Hai. – Mirza Ghalib

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.

Ishq Par Jor Nahi Hai Ye Vo Aatish “Ghalib”, Ki Lagaye Na Lage Aur Bujhaye Na Bujhe. – Mirza Ghalib

मिर्जा गालिब की दर्द भरी गजलें

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता.

Kuch To Tanhai Ki Raato Me Sahara Hota, Tum Na Hote Na Sahi Zikra Tumhara Hota. – Mirza Ghalib

मेरे कातिल भी परेशान है मेरे चाहने वालो की दुआ से,
जब भी वार करते है खंजर टूट जाते है.

Mere Qatil Bhi Pareshan Hai Mere Chahne Valo Ki Dua Se, Jab Bhi Karte Hai Khanjar Toot Jate Hai. – Mirza Ghalib

बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

Bus ki dushwar hai har kaam ka aasan hona,
Aadmi ko bhi mayassar nahi insaan hona.


मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया.

Bheegi Huyi Raat Me Jab Yaad Jal Uthi, Badal Sa Ek Nichod Ke Sarhane Rakh Liye. – Mirza Ghalib 

हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।

Hum to fana ho gaye uski aankhe dekhkar ghalib,
Naa jane wo aaina kaise dekhte honge.

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!

Fikra-ae duniya me sir khapata hu
Main kaha aur ye bawal kaha.

ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।

Zindagi se hum apni kuch udhar nahi lete,
Kafan bhi lete hai to apni zindgi dekar.

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।

Dard jab dik me ho to dawa kijiye,
Dil hi jab dard ho to kya kijiye.

खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह।

Khairat me mili khushi mujhe acchi nahi lgti ghalib,
Main apne dukho me rhta hu nawabo ki tarah.

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।

Hum na badlenge waqt ki raftaar ke sath,
Jab bhi milenge andaz purana hoga.

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