bashir badr shayari in hindi | बशीर बद्र शायरी इन हिंदी
न जी भर के देखा न कुछ बात की,
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की..
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलानें में।
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मशहूर शायरों के शेर
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी,
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता..
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तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था,
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा..
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बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता..
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भूल शायद बहुत बड़ी कर ली,
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली...
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बशीर बद्र रोमांटिक शायरी
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा,
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा..
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इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक,
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं..
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दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है,
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है..
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मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना,
यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है..
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पुराने शायरों की शायरी
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा,
हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में..
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फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है,
इस में तिरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है..
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मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा,
आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा..
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मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है,
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता..
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बशीर बद्र की दर्द भरी शायरी
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में..
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखो को अभी ख्वाब छुपानें नहीं आते ।
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ज़िन्दगी तूनें मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फ़ैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
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बशीर बद्र के मशहूर ग़ज़ल
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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बे-वक़्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
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उदासी पत-झड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी
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वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियां
उन्हीं का हाथ हम ने छू के देखा कितना सर्द है
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दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफाओं में
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ये फूल हैं या शे’रों ने सूरतें पाई हैं
शाख़ें हैं कि शबनम में नहलाई हुई ग़ज़लें
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बशीर बद्र के मशहूर शेर
जिन का सारा जिस्म होता है हमारी ही तरह
फूल कुछ ऐसे भी खिलते हैं हमेशा रात को
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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
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मैं ने इक नॉवेल लिक्खा है आने वाली सुब्ह के नाम
कितनी रातों का जागा हूं नींद भरी है आंखों में
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अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैं
गए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ
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भटक रही है पुरानी दुलाइयां ओढ़े
हवेलियों में मिरे ख़ानदान की ख़ुशबू
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कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो ।
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