iqbal poetry | इक़बाल पोएट्री

iqbal poetry | इक़बाल पोएट्री 

iqbal poetry | इक़बाल पोएट्री

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

-अल्लामा इकबाल
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दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

-अल्लामा इकबाल
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तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
-अल्लामा
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दिल ऐसी चीज़ है जो किसी पर भी ग़ालिब हो सकती है..
मगर नफ़्स की नुमाइश को मिटाना भी इबादत है..
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फूल की पती से कट सकता है हीरे का जिगर 
मर्दे नादाँ पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर

अल्लामा इकबाल 
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मुलाकातें नहीं मुमकिन हमें अहेसास है लेकिन..
तुम्हे हम याद करते है बस इतना याद रखना तुम

mulakate nahi mumkin hame ahsas hai lekin
tumhe yaad karte hai bs itna yaad rakhna tum
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पूछते हो तुम्हे क्या पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी सवाल करते हो

puchhte ho tumhe kya pasand hai
jwab khud ho fir swal karte ho
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तेरे सजदे कहीं तुझे काफ़िर ना कर दे ऐ इकबाल
जो झुकता कहीं और है सोचता कहीं और है.

tere sajde kahi tujhe kafir n kar de ae iqwal
jo jhukta kahi or hai sochta kahi or hai
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अनोखी बजह है सारे ज़माने से निराले हैं 
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के रहने वाले हैं

anokhi bajah hai sare jmane se nirale hai
ye ashik kon si basti ke rahne wale hai
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मुझ सा कोई शख्स नादान भी न हो.
करे जो इश्क़ कहता है नुकसान भी न हो.

mujh sa koe shakhash nadan bhi n ho
kare jo ishak kahta hai nuksan bhi n ho
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नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

nsha pila ke girana to sab ko ata hai
mja to tab hai ki girto ko tham le saki
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दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
लूटने वाले को तरसती है।
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इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा।
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साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है
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इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में,
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर।
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इश्क़ तेरी इन्तेहाँ इश्क़ मेरी इन्तेहाँ,
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
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फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।
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जफा जो इश्क़ में हो तो है वह जफा नहीं,
सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मजा  नहीं

jfaa jo ishak me ho to vah jfaa nahi
sitam n ho to muhabbat me kuchh mja nahi
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माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
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न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
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उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए

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