शायरी rekhta | shayari

शायरी rekhta | shayari 

शायरी rekhta | shayari

प्रेम की गली में सब शराब लेकर आए थे
हम बहुत खराब थे किताब लेकर आए थे

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कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
ये भी इक बे-ख़बरी थी कि ख़बर-दार रहा

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जिंदगी शायरी रेख़्ता

मिलना और बिछुड़ना दोनों 
जीवन की मजबूरी है

उतने ही हम पास रहेंगे
जितनी हममें दूरी है

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वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान 
जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान 

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दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

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इश्क शायरी रेख़्ता

दुख की रात नींद नहीं आती, 
और सुख की रात कौन सोता है।

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होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है 
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है। 

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कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

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ये ज़रूरी है कि आंखों का भरम क़ाएम रहे 
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो 

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नई रेख़्ता शायरी

एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है
धूप आँगन में फैल जाती है

क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है

कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है

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"वो फिराक हो कि विसाल हो तेरी आग महकेगी एक दिन 
 वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चिराग बन के जला न हो."
 
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कोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़
कहाँ है शहर में अब कोई ज़िंदगी की तरफ़

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बेहतरीन उर्दू शायरी

भीख माँगना भी एक धंधा है। 
ग़रीब माँगे तो भीख है, नेता माँगें तो चंदा है।

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उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो।
ख़र्च करने से पहले कमाया करो। 

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अगर कोई दीवारों से बातें कर रहा है
तो वो पागल नहीं है
वो सामान्य है 

"पागल हम है"
बचा ही कौन है ??
जो किसी का दुःख सुने और समझे... 

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रेख़्ता शायरी कलेक्शन

ये अलग बात है कि ख़ामोश खड़े रहते हैं
फिर भी जो लोग बड़े हैं, वो बड़े रहते हैं

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कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है

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पाकिस्तानी उर्दू शायरी

झूठ बोलकर मैं भी चाँद पर चला जाता लेकिन मेरी सच 
बोलने की आदत ने मुझे ज़मीन से जोड़ रखा है !!!

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व्यक्ति उन्नति करता है तो उसके नाम के साथ कई तरह के अपवाद जुड़ने लगते हैं।

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दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले 
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

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आज की रात है अजीब, कोई नहीं मेरे करीब
आज सब अपने घर रहे, आज सब अपने घर गए

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उर्दू शायरी मोहब्बत

इतनी नफरत यार कहां से लाते हो
लफ्जों में अंगार कहां से लाते हो
कल जो थे तुम आज नहीं हो कल कुछ और
रोज नए किरदार कहां से लाते हो
 
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ये मन जो कितने बड़े बड़े घाव बर्दाश्त कर लेता है 

जाने क्यूँ कभी कभी छोटी सी बात पे बच्चों सा बिलखने लगता है

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खुदगर्ज रेख़्ता शायरी

उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है

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आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई 

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सूफी शायरी रेख़्ता

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया 
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है 

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एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

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उर्दू शायरी 2 लाइन

आख़िर हैं कौन लोग जो बख़्शे ही जाएँगे 
तारीख़ के हराम से तौबा किए बग़ैर 

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कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के 
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो 


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